अंजानी मंझील
अंजानीसी गलियाँ
वो राह अंजानी
अंजानी उन सुर्खीयोमें
अजनबी तुम ..अजनबी हम ...
इक ख्वाब अधुरासा
इक शाम धुंदलीसी
वो बढ रहा अंधेरा
वो खत्म हो रहा ...सुरज कहीं ...
उन आजनबियोंके बीच
कुछ जाना कुछ पहचानासा ...
इक खिलखीलाता चेहरा ...
वो मासूम झिंदगी ...
इक मासुम अब तैयार खडी
अन्जानी राह पर ..
अन्जाने सफर की ओर
इक अजनबीसी l
......bhavna